ऐसा कहा जाता है उस समय सब जगह पानी था ।पानी के नीचे मिट्टी था, और आसमान भी बहुत अधिक ऊचाई पर नहीं था । "ठाकुर जीउ "अपनी पत्नी ठाकुराइन के साथ आसमान में रहते थे ।पर स्नान करने के लिए वे दोनों "तोड़े -सुतम "(कल्पीनिक तन्तु ) के द्वरा पानी में उतरा करते थे ।स्नान करने के बाद वे दोनों आसमान में लौट जाया करते थे । एक दिन जब ठाकुराइन नहा रही थी ,उस समय उसकी हंसली हड्डी के पास कुछ मैल निकला, उस मैल को ठकुराइन अपनी हथेली पर कुछ देर मलती रही ।इस क्रिया से दो पक्षियो का स्वरुप बना ।दोनों देखने में बहुत ही सुन्दर लग रहे थे ।ठाकुराइन के अनुरोध पर ठाकुर जिउ ने दोनों को फूक कर उसमे प्राण डाल दिए ।प्राण आने के बाद दोनों पक्षी उड़ पड़े ,पर चारों ओर पानी था ।दोनों के लिये कही कोई जगह नहीं था ।दोनों कब तक उड़ते रहते ? इसलिए दोनों पक्षी उड़ान से थकने पर ठाकुर जिउ के कंधे पर बैठ जाते थे ।वे दोनों कंधे पर ही विश्राम करते थे । दोनों पक्षी ठकुराइन के हँसली हड्डी के मैल से बने थे, इस कारण दोनों का नाम "हास -हासिल " पड़ा । दाहिनी ओर के हँसली हड्डी के मैल से जो पक्षी बना वह नर था, और " हांस " (हँस ) कहलाया ।बायी ओर के मैल से जो बनने वाली पक्षी मादा थी, और " हाँसिल " (हंसिनी )कहलायी ।दोनों साथ रहा करते थे । सिंगबोंगा ( बोंगा = देवता ) का सिंग सदोम ( घोड़ा ) पानी पीने के लिए आसमान से नीचे आता था, और वापस चला जाता था । एक दिन जब सिंगसदोम पानी पी रहा था, तब उसके मुह से निकला हुआ फैन तैरता रहा । ठाकुर जेउ ने देखा की फैन तैर रहा है । उसने दोनों पक्षी को आदेश दिया कि तुमदोनो उस फैन पर बैठो । दोनों पक्षी आदेशनुसार फैन पर बैठ गए । लेकिन वो फैन कब तक तैरते रहता, किसी भी समय पानी में घुल सकता था । उस समय पानी में कछुआ , मगरमच्छ , केकड़ा , केंचुआ , मछली आदि अनेक जीव - जन्तु रहते थे । एक बार कि बात है , जब ठकुराइन स्नान कर रही थी ।स्नान करते समय सिर के कुछ बाल जल में गिर गए । उस बाल से "बिरना " (सिरम दंधी ) कि उत्पत्ति हुई । "सिरम दंधी " पानी में तैरता रहता था ।उसके साथ -साथ "ठाकुर जेउ " ने जल पर ही " करम " वृक्ष उत्पन कर दिया था । इसके बाद "हंस -हसिल " उस करम वृक्ष पर जा बैठे, कुछ समय बाद " सिरम दंधी " का झाड़ बहते -बहते "करम " वृक्ष में जा लगा ।दोनों पक्षियों ने सिरम दंधी की झाड़ में अपना घोंसला बनाया । कुछ दिनों के बाद "हांसिल " ने दो अंडे दिए ।यह देखकर ठाकुर - ठकुराईन बहुत खुश थे । मगर जल में बहुत सारे जंतु रहते थे । ठाकुर - ठकुराईन को डर था कि जल का कोई जावर अंडे को खा न ले ।इसलिए ठाकुर जी समय -समय पर अंडे कि खोज -खबर लिया करते थे। कुछ दिनों बाद उस अंडे से दो छोटे बच्चे पैदा हुए ।जो मनुष्य के आकृती के थे । दोनों पक्षी " हास् -हसिल " को चिन्ता सताने लगी की अब दोनों बच्चो को कहा रखा जाए । दोनों पक्षी विलाप करने लगे । दोनों पक्षी का विलाप सुनकर " ठाकुर जेउ " बहुत चिंतित हुए । उस समय उसने फैसला लिया कि क्यों न पानी कि नीचे से मट्टी उठाई जाय । उसने पानी में रहने वाले सभी जल -जंतु को मिट्टी उठाने को कहा । पहले केकड़ा ने अपने चिमटे से मिट्टी उठाने का काम शुरु किया, मगर पानी की सतह तक पहुचने से पहले सारी मिट्टी पानी में घुल गयी । इस तरह केकड़ा मिट्टी उठाने में असफल रहा । इसके बाद ठाकुर जेउ के आदेश के अनुसार बरी -बरी से मगरमच्छ , मछली आदि जंतु ने नीचे से मिट्टी उठाने का प्रयाश किया, लेकिन सब असफल रहे । इस प्रकार अंत में केंचुए से मिट्टी लाने को कहा गया । केंचुए ने कहा यदि कछुआ पानी की सतह पर तो वो मिट्टी उसकी पीठ पर उठा सकता है । इस प्रकार कछुए को सतह पर ठहराया गया, और उसकी तीन टांगो को " खूट " दिया गया , जिससे वो हिल -डुल न सके । इसके बाद केचुए ने मिट्टी निकलने का काम शुरु किया । केचुए पानी के अन्दर जाकर अपने मुँह में मिट्टी भर लिया और अपनी पूंछ कछुआ के पीठ पर निकाल दी । इस प्रकार केचुए ने कछुआ के पीठ पर काफी मिट्टी जमा कर ली ।ठाकुर जेउ ने मिट्टी को समतल करवाया , जिस जगह उच्चा था वहा पर पहाड़ बन गया ,और जहा नीचा था वहा नदी ,झील बन गये ।इसके बाद " सिरम दंधी " का झाड़ और "करम " वृक्ष तैरते हुए उस बनी हुई सतह पर आ गया । ठाकुर जेउ के आदेश पर " हँस -हसिल " अपने मानव शिशुओ के साथ सतह पर आ गए । उन दोनों शिशुओ को धरती के जिस सतह पर पहली बार लाया गया उसका नाम " हिहिड़ी -पीपीडी " था ।हंस -हसिल के दोनों शिशुओ को हमलोग " पिलचु हडाम - पिलचू बूढ़ी " ( पिलचु -दंपति ) के नाम से जानते है ।वही से मानव वंस की वृद्धि हुई । " पिलचु हडाम - पिलचू बूढ़ी " ( पिलचु -दंपति ) के वंशजों को आज हमलोग " संथाल जाति " के रूप में देखते है ।
Courtesy :: santhaltoday.in
Direct Http Link :: http://www.santhaltoday.in/santhal%20page%20links/santhal.html
1 Comments
Thanks bahut aychha
ReplyDelete