"सोहराय " संताल जनजाति के लोगों का सबसे बड़ा त्योहार है , जिसमे
गो-पूजन किये जाने का रिवाज है। सोहराई गाय और भैंस जैसे घरेलू जानवरों की
देखभाल के लिए जाना जाता है। चूंकि इन जानवरों के एक कृषि समाज में महत्वपूर्ण हैं, उनकी देखभाल की महत्वपूर्ण रस्म के रूप में मनाया
जाता है। यह परब मकर -सक्रांति के ठीक पहले भिन्न -भिन्न गावों में अपनी
सुविधा के अनुसार भिन्न -भिन्न दिनों में होता है । इस महापर्ब में पाँच
दिनों तक गावों भर में नाच -गान की धूम रहती है।
लोककथा
संताली लोककथा के आनुसार "हासिल " ने दो अंडे दिये । जिससे दो मानव शिशु का जन्म हुआ । तब , "ठाकुर जेऊ " को चिन्ता हुई कि उन दोनों मानव -शिशु के लिए आहार का प्रबन्ध किया जाय । उस समय स्वर्गपुरी में "आईनी -बाईनी कपिला " गाये थी । "ठाकुर जेऊ " ने "मरांग बुरु " को अपने पास बुलाकर कहा कि उन गायों को धरती पर ले जाए । इसके बाद "मरांग -बुरु " नर -मादा "आईनी -बाईनी "कपिला " गायों को पृथ्वी पर ले आये और उन्हें जंगल में रखा । इसके बाद "मारंग बुरु " ने कुछ मोटे अनाजों के बीज़ धरती पर जहा -तहा छीटक दिए । इसके बाद समय गुजरने के साथ -साथ "पिल्चु-दंपति " तथा " कपिला गायों " की वंश -वृद्धि हो गई । मानव - संताने, हाथों से चालित हलों से जमीन जोतकर अनाज़ उपजाना सीख चुकी थी । "मरांगबुरु " ने लोगों से कहा ,"हस्त चलित हलों से कब तक जमीन जोतते रहोगे ? जाओ , जंगल से नर -मादा कपिला गायों को ले आओ । उनमे से नर कपिला से हल चलाया करना और मादा गायों के दूध खाया -पीया करना ।" इसके बाद वे लोग गायों की खोज में जंगल गए । जंगल में उनलोगों को गायों का झुण्ड मिला । इसके बाद वे लोग गायों को अपने यहाँ ले आए। इसके बाद उन पशुओ के सींगों में तेल -सिन्दूर लगाकर उनका स्वागत किया गया ,उनका परिछन किया गया और उन्हें "गोहाल " (मवेशी -घर ) में रखा गया । दूसरे दिन उन मवेशियों को 'गोहाल ' से निकालकर चरने के लिए , "चरवाहों " के साथ बाहर भेज दिया गया और 'गोहालों ' को साफ़ करके पूजा की गई । दिनभर गायों को चराने के बाद , सांझ हो जाने पर सभी चारवाहो गायों को लेकर वापस गोहाल में आ गए । तब , धूप -दीपों के साथ उन मवेशियों का परिछन किया गया साथ ही ,नाच -गान के साथ उस दिन रात्रि -जागरण किया गया । इसके बाद तीसरे दिन, बैलों को अपने -अपने दरवाजे पर निकालकर , उन्हें सजा -धजाकर जमीन पर गाड़े गए खूटो में बांधकर उसकाते हुए 'खेल -कूद ' किया जाता है । चौथे दिन घर -घर से कुछ अन्न -पान माँगकर सहभोज किया गया और पाँचवे दिन "बोझा तुय " का दिन कहलाता है । संताल लोग "सोहराई" पर्ब को प्रत्येक साल बहुत धूम -धाम से मनाते है ।
Courtesy :: santhaltoday.in
लोककथा
संताली लोककथा के आनुसार "हासिल " ने दो अंडे दिये । जिससे दो मानव शिशु का जन्म हुआ । तब , "ठाकुर जेऊ " को चिन्ता हुई कि उन दोनों मानव -शिशु के लिए आहार का प्रबन्ध किया जाय । उस समय स्वर्गपुरी में "आईनी -बाईनी कपिला " गाये थी । "ठाकुर जेऊ " ने "मरांग बुरु " को अपने पास बुलाकर कहा कि उन गायों को धरती पर ले जाए । इसके बाद "मरांग -बुरु " नर -मादा "आईनी -बाईनी "कपिला " गायों को पृथ्वी पर ले आये और उन्हें जंगल में रखा । इसके बाद "मारंग बुरु " ने कुछ मोटे अनाजों के बीज़ धरती पर जहा -तहा छीटक दिए । इसके बाद समय गुजरने के साथ -साथ "पिल्चु-दंपति " तथा " कपिला गायों " की वंश -वृद्धि हो गई । मानव - संताने, हाथों से चालित हलों से जमीन जोतकर अनाज़ उपजाना सीख चुकी थी । "मरांगबुरु " ने लोगों से कहा ,"हस्त चलित हलों से कब तक जमीन जोतते रहोगे ? जाओ , जंगल से नर -मादा कपिला गायों को ले आओ । उनमे से नर कपिला से हल चलाया करना और मादा गायों के दूध खाया -पीया करना ।" इसके बाद वे लोग गायों की खोज में जंगल गए । जंगल में उनलोगों को गायों का झुण्ड मिला । इसके बाद वे लोग गायों को अपने यहाँ ले आए। इसके बाद उन पशुओ के सींगों में तेल -सिन्दूर लगाकर उनका स्वागत किया गया ,उनका परिछन किया गया और उन्हें "गोहाल " (मवेशी -घर ) में रखा गया । दूसरे दिन उन मवेशियों को 'गोहाल ' से निकालकर चरने के लिए , "चरवाहों " के साथ बाहर भेज दिया गया और 'गोहालों ' को साफ़ करके पूजा की गई । दिनभर गायों को चराने के बाद , सांझ हो जाने पर सभी चारवाहो गायों को लेकर वापस गोहाल में आ गए । तब , धूप -दीपों के साथ उन मवेशियों का परिछन किया गया साथ ही ,नाच -गान के साथ उस दिन रात्रि -जागरण किया गया । इसके बाद तीसरे दिन, बैलों को अपने -अपने दरवाजे पर निकालकर , उन्हें सजा -धजाकर जमीन पर गाड़े गए खूटो में बांधकर उसकाते हुए 'खेल -कूद ' किया जाता है । चौथे दिन घर -घर से कुछ अन्न -पान माँगकर सहभोज किया गया और पाँचवे दिन "बोझा तुय " का दिन कहलाता है । संताल लोग "सोहराई" पर्ब को प्रत्येक साल बहुत धूम -धाम से मनाते है ।
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