संथाल आदिवासी का धर्म प्रकृति से सम्बंधित देवताओ , अपने पूर्वजों से
संबंधित है । संथाल लोग एक अलौकिक शक्ति में विश्वाश करने के साथ उन तंत्र
पर भी विश्वास करते है , जिससे किसी व्यक्ति को
लाभ या हानी पहुँचा सकते है । संथालो के मुख्या देवता , सिंग बोंगा , मरांग
बुरु , जाहेर एरा , गोसाई , मोडेको -तुरुयको , ओड़ाक बोंगा , सीमा बोंगा,
हापड़ाम को , माँझी बोंगा , परगना बोंगा आदि है । इसमे
"ओड़ाक बोंगा" का पूजा संथाली गोत्र ( परिस ) के अनुसार होता है ।प्रत्येक
गोत्र का "ओड़क बोंगा" अलग -अलग होता है । संथालो लोग झाड़ -फूक़ , तन्त्र
-मन्त्र में भी यकीन करते है ।संथाली दंतकथा के अनुसार धरती के पहले प्राणी
"पिलचु दम्पति" को इस धर्म का निर्देश दिया गया था । "मारांग बुरु " ने
स्वय ही "पिल्चु दंपति" को मध् बनाना और उनके नाम पर अर्पित करना सिखाया ।
ठाकुर जी ने स्वय उन्हें साल का वृक्ष दिखया ,जहा पूजा करना था ।जिसे
हमलोग "जाहेर थान के नाम से जानते है । जाहेर थान चारों तरफ से खुला रहता
है । संथाल जाहेर थान पर सामूहिक रूप से पूजा करते है । पर इसमे महिलाये
हिस्सा नहीं लेती ।
संथाली धर्म मानने वाले लोग
को "बोंगा होड़" या सनातन संथाल भी कहते है । इनका मानना है कि किसी भी
व्यक्ति , परिवार या बस्ती का कुशल - मंगल उनके बोंगा ( देवता ) पर ही
निर्भर है ।
संथालो के पूजा का मूल उनके बाखेड़ ( मंत्र ) में ही है । पूजा में ये लोग
बलिदान के रूप में मुर्गा -मुर्गी , कबूतर , भेड़ , बकरी ,सुवर आदि का ,
तथा हँड़िया का चड़ावा , तथा नए अन्नों , फल - फूल का भोग लगाना अनिवार्य
है ।
संथालो का धर्म पुरुष प्रधान धर्म है ।धार्मिक अनुष्ठानो में स्त्रिया पूजा
के भोग सामग्री ,सफाई ,उपवास सभी नियम धर्म का पालन करती है ।पर पूजा में
पुरुष ही भाग लेते है । यहाँ तक कि पूजा स्थल पर स्त्रियों का जाना भी मना
है । जाहेर थान और माँझी थान इनके प्रमुख धार्मिक स्थल है । यहाँ स्त्रिया
पूजा में भाग नहीं ले सकती , परन्तु नाच - गान , में भाग लेना अनिवार्य है ।
नायके इन स्थल पर समय - समय पर पूजा अर्चना करते है ।
Courtesy :: santhaltoday.in
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