लिपि की जरुरत भाषा को लिखित रूप प्रदान करने के लिए होती है । लिपि का
विकास भाषा -साहित्य के विकास से जुड़ा होता है । दूसरे अर्थों में विकसित
एव वैज्ञानिक भाषा वही है जिसकी अपनी लिपि हो । संताली भारत की एक ऐसी
आदिवासी भाषा है , जिसे रोमन , देवनागरी , बांग्ला , उड़िया , असमी और
ओलचिकी लिपियों में लिखी और पढ़ी जा रही है । यह स्थिति एक ओर जहा संताली
भाषा -साहित्य के विकास की दृष्टि से अच्छी है , वही दूसरी ओर कई -कई
लिपियों के कारण इसे एकरूपता की समस्या की समस्या से भी जूझना पड़ रहा है ।
हालांकि भारत की सभी आदिवासी भाषाए लिपि की समस्या से जूझ रही है । पचास
के दसक में पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा आविष्कृत "ओलचिकी " लिपि अब भी
संघर्ष कर रही है । ओलचिकी में अशुद्धियो को लेकर अब विवाद भी शुरु हो गया
है । लेकिन , फिलहाल तो "ओलचिकी" ही संतालों की स्वतंत्र लिपि है ।
धीरे -धीरे यह लिपि लोकप्रिय भी हो
रही है ।
Courtesy :: santhaltoday.in
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