यह उस समय की बात है , जब किस्कू गोत्र के लोग "राजा" (किस्कू राजा) हुआ करते थे और सोरेन गोत्र के लोग सिपाही थे । उस समय सभी खेरवाल (संताल) अपने धर्म, संस्कृति , रिति -रिवाज, का पालन करते थे । किस्कू राजा अक्सर सैनिक (सोरेन सैनिक) के साथ अपने राज्य की स्थिति देखने के लिये राज्य - भ्रमण के लिए जाते थे । एक समय की बात है जब राजा अपने सैनिक के साथ राज्य - भ्रमण के लिए जा रहे थे , जाते समय नवजात अनाथ बच्चा पत्ते से छिपाया हुआ जंगल में रास्ता के किनारे मिला । राजा उसे अपने साथ महल ले कर आ गए । राजा ने इसके बाद बच्चे के माता - पिता की खोज शुरु कर दी, पर खोज करने पर भी पता नही चल पाया । इसके बाद किस्कू राजा ने ही उस अनाथ बच्चे का पालन - पोषण कराया और उसका नाम " माधोसिंह " रखा गया । माधोसिंह बड़ा होने पर बहुत बलवान और बुद्धिमान बन गया । किस्कू राजा के शरण में रहने के कारण उस राज्य में उसका काफी रोब - दबदबा रहता था । जब "माधोसिंह" बड़ा हो गया , तब किस्कू राजा ने माधोसिंह की शादी करानी चाही , पर अनाथ होने के कारण राज्य के अन्दर कोई भी संताल माधो सिंह से शादी करने के लिए अपनी लड़की देना पसन्द नहीं करते थे । इसके बाद माधो सिंह ने उस राज्य के संतालों को आतंकित करना शुरु कर दिया , और अपहरण करके जबरजस्ती शादी कर लेने का सभी खेरवाल (संताल) को भय हो गया । वे सब "माधो सिंह" से तंग आ गए थे और एक दिन ऐसा आया जब राज्य के सभी संतालों ने राज्य को छोड़ने का फैसला किया । वो समय वर्षाकाल का समय था । जिसके कारण वर्षा काल में तय करके उक्त किस्कू राजा के राज्यों को , अपना घर - द्वार , माल - मवेशियों , चल -अचल सम्पति को छोड़ करके अंधेरी रात में किस्कू राजा को सूचित किये बिना सभी खेरवाल (संताल) अपने -अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए अपने -अपने परिवार के साथ एक समूह में अन्यत्र के लिए प्रस्थान कर गये । किस्कू राजा को जानकारी मिलने पर उनके द्वारा रोके जाने के बाद भी वे नहीं माने । उस वक्त राजा ने सोचा कि जब उनके प्रजा ही नहीं रह रहे है तो वे राज्य में रह करके क्या करेंगे । वे भी धर्म और संस्कृति बाचने के लिए राज्य छोड़ करके उन्ही लोगों के साथ जाने लगे । वर्षाकाल का समय था , रास्ते में लबालब बाड़ भरी नदी मिली । अब सभी लोगों के लिये नदी पार करना मुश्किल था और माधोसिंह के भय से उस नदी को पार करना आवश्यक हो गया था । उधर माधोसिंह को भी पता चल गया की राज्य के लोग राज्य छोड़कर जा रहे है । वो उनलोगों का पीछा करने लगे । ऐसी परिस्थिती पर राजा सहित सभी ने उपाय सोचा की धर्म संकट में नदी पार करने हेतु थोड़े देर बाड़ रोकने के लिए सामूहिक रूप से अपने इश्वर " मारंग - बुरु " से विशेष रूप से संकट कालिन प्राथना की जाय । वे सभी मरंग्बुरु की प्राथना करने लगे , तब "मरांगबुरु" ने कुछसमय के लिए बाड़ रोक दी । राजा सहित सभी लोग पार हो गये और पुन नदी में बाड़ लबालब भर गई । इसके बाद "माधोसिंह" भी घोड़ा पर सवार होकर बाड़ भरी उस नदी के किनारे पहुच गया लेकिन नदी में बाड़ के कारण माधोसिंह नदी पार नहीं कर सका । वो वही रह गया और सभी संथाल बच गये । अपने धर्म ,संस्कृति की रक्षा करने के लिए उन लोगों ने अपने -अपने संपति और राजगद्दी तक छोड़ दिये और धर्म संकट की परिस्थिती पर "मरंग्बुरु" ने उन्हें और उनके धर्म और संस्कृति की रक्षा की । वे लोग हजारीबाग से भी आगे बड़कर नाइगाडा (नदी) के क्षेत्र में बस गये जो दक्षिण दिशा में है । संथाल लोंग आज भी शव को दक्षिण दिशा में माथा रखकर गाड़ते या जलाते है ।
Courtesy :: santhaltoday.in
Direct Http Link :: http://www.santhaltoday.in/santhal%20page%20links/madhosingh.html
0 Comments