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"आसन के पत्ते की कथा" [Tale Of Leaves Of Aasan]

 
Aasan leaves & flower

' संताल लोग ' आसन के पत्ते में खाना नहीं खाते है तथा बच्चा होने पर उसे यथासंभव आसन के पत्ते पर पहले रखा जाता है । यह एक मान्यता है , जिसका पालन सभी संताल लोग करते है । इस मान्यता या रस्म की कहानी बड़ी रोचक है । 'करैल' बॉस के नरम कल्ले को कहा जाता है जिसकी सब्जी बनती है । संताली में करैल को 'हेल्ता' कहा जाता है । इस घटना में ' सोनेर गीदी रायला गिदी ' का अर्थ है , लंबी पूछवाली गिद्ध । इन्हें भी हम इस लोककथा में देखते है । इसी कहानी में गिद्ध द्वारा मॉस खाने का जिक्र मिलता है । इस संताली लोककथा के अनुसार पहले गिद्ध मॉसभक्षी नहीं थे । लेकिन जब पहलीबार एक मॉस का टुकड़ा गिद्ध के मुह में अनजाने जा पड़ा और उसका स्वाद उसे भा गया तभी से गिद्ध मॉस खाने लगे । लोककथा :-- एकबार एक गांव की कुछ स्त्रिया 'करैल ' (बॉस का नरम कल्ला ) लाने के लिए जंगल गई हुई थी । उनमे से एक स्त्री हर्भवती थी । संयोगवस जंगल में ही उस स्त्री को एक लड़का हो गया । उससे पहले वह स्त्री काफी 'करैल ' जमा कर चुकी थी । अब उसके साथ यह समस्या थी की वह 'करैल ' को अपने साथ ले जाए या नवजात शिशु को ? सोच - विचार कर उस स्त्री ने अंत में तय किया कि ' करैलो ' को ही ले जाएगी , अपने बच्चे को नहीं, उसे बाद में ले जाएगी । इसलिए उसने अपने नवजात शिशु को 'आसन ' के पत्तों पर लिटाकर ऊपर से आसन के पत्तो से ही ढक दिया और 'करैलो ' को लेकर घर लौट गई । जंगल में पड़ा हुआ वह शिशु कुछ देर के बाद रोने लगा । इसका रोना एक गिद्ध - दंपति ( नर - मादा ) ने सुना । उनदोनों ने पास जाकर देखा कि एक नवजात शिशु 'आसन ' के पत्ते में ढका पड़ा है और रो रहा है । उसे देखकर उस गिद्ध - दम्पति को दया आई । वे दोनों उसे उठाकर अपने साथ ले गाए और पाल - पोसकर बड़ा किया । वो लड़का कुछ बड़ा हुआ तो वो आस - पास के गांव से मकई , अनाज मांग लाने को जाया करता । वैसे में उसे पलनेवाले गिद्ध दंपति ने कह रखा था , तुम और - और गांव में तो जाना , लेकिन अमुक गांव मे मत जाना, क्योंकि वाह बड़े - बड़े कुत्ते है तुम्हें काट लेंगे । वह लड़का सारंगी बजाते, गाना गाते हुए लोगों से कुछ माँगा करता था । एक बार संयोग से वह लड़का उसी गांव में जा पहुचा जहां जाने की मनाही उसके पलनेवाले 'गिद्ध - दंपति' ने कर राखी थी । उस लड़के का वह गाना सुनकर उसकी जन्मदात्री माँ को, जो उसी गांव में रहती थी होश आया कि, हो न हो यह वही लड़का है जिसे मैंने ' आसन ' के पत्ते से ढककर जंगल में छोड़ दिया था । तब उस पति - पत्नी ने उस लड़के को अपने घर में रख लिया । वह लड़का अपने पालनकर्ता गिद्ध - दंपति के पास लौट नही सका । उधर, सांझ तक जब लड़का गिद्ध दंपति के पास नही लौटा, तब वे दोनों गिद्ध उस लड़के की खोज में निकले । उन्हें मालूम हुआ कि उस लड़के को उसके जन्मदाता माँ - बाप ने अपने घर के अन्दर बंद कर रखा है । तब, वे दोनों गिद्ध उस गांव में जा पहुंचे और उस घर के छप्पर को उन दोनों गिद्धों ने झपट्टे मार - मारकर फाड़ डाला और उस लड़के को बाहर निकाल लिया , परन्तु उस लड़के के माँ - बाप उस लड़के को छोड़ने के लिए तैयार नही थे । वैसी स्थिति में उस लड़के के माँ - बाप और दोनों गिद्ध के बीच खीचातानी होने लगी । उस खीचातानी में उस लड़के को दो हिस्सों में चीर डाला गया । लड़का मर गया । लड़के का जो हिस्सा गिद्ध के पाले पड़ा था उसे वे लकड़ी - पत्ते जमा करके जलाने लगे । तभी उसकी चिता से एक अंगारा छिटककर मादा गिद्ध के मुंह पर जा लगा, उसका स्वाद उसे बड़ा अच्छा लगा । कहा जाता है कि उसी समय से गिद्ध मॉस खाने लगे, उससे पहले नहीं खाते थे । तभी से संताललोग भी 'आसन' के पत्ते पर खाना नही खाते है और बच्चा होने पर यथासंभव आसन के पत्ते पर पहले - पहल रखा जाता है ।
Courtesy :: santhaltoday.in
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